श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय और गणित में योगदान
Ramanujan ka Jivan Parichay: श्रीनिवास रामानुजन भारत के एक ऐसे असाधारण व्यक्ति थे, जिन्हें गणित के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान के लिए जाना जाता है। श्रीनिवास रामानुजन ने यह साबित कर दिया कि व्यक्ति चाहे तो कुछ भी कर सकता है।
श्रीनिवास रामानुजन 11वीं कक्षा में फेल हो गए थे, फिर भी उन्होंने पूरी दुनिया में गणित के विषय में महत्वपूर्ण योगदान देकर दुनिया को आश्चर्यचकित कर दिया था। एक गरीब परिवार में जन्म लेने के बाद श्रीनिवास रामानुजन ने दुनिया में भारत को गौरव प्रदान करवाया।
गणित के क्षेत्र में श्रीनिवास रामानुजन के योगदान की बदौलत ही पूरी दुनिया आज भारत को याद करती हैं और देश इस योगदान के लिए श्रीनिवास रामानुजन को याद करता है।
उनका गणित के विषय में अतुल्य योगदान रहा है। उन्होंने मात्र 33 वर्ष की आयु में ही इस दुनिया को छोड़ दिया था। लेकिन गणित के विषय में बड़ा योगदान देकर दुनिया में अपना नाम अमर कर लिया है।
इस लेख में महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय गणित में योगदान , श्रीनिवास रामानुजन् की शिक्षा, परिवार, संघर्ष आदि के बारे में विस्तार से बताया है।
श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय (Ramanujan ka Jivan Parichay)
श्रीनिवास रामानुजन कौन थे.
श्रीनिवास रामानुजन का पूरा नाम श्रीनिवास अयंगर रामानुजन है। इनका जन्म 22 दिसंबर 1887 को तमिलनाडु के मद्रास के इरोड गांव में हुआ था। रामानुजन के पिता का नाम श्रीनिवास अयंगर और माता का नाम कोमलताम्मल है।
उनकी पत्नी का नाम जानकी था। मात्र 33 वर्ष की आयु में ही श्रीनिवास रामानुजन का निधन 26 अप्रैल 1920 को हो गया था।
बचपन से ही रामानुजन दूसरे बच्चों के मुकाबले अत्यंत बुद्धिमान थे। परंतु जन्म से 3 वर्ष तक इन्होंने बोलना नहीं सीखा था, लेकिन स्कूल में प्रवेश करने के बाद यह अचानक से बोलने लग गए। रामानुजन के पिता एक कार्यालय में छोटा काम करते थे।
उनकी माता मंदिर में गायिका का कार्य करती थी। उनका बचपन खास तौर पर उसी जगह पर बिता, जो जगह विशेष रूप से प्राचीन मंदिर के लिए जानी जाती है। रामानुजन के भाई-बहन बचपन में ही मर गए थे, इसीलिए बचपन से ही उन्हें अनेक तरह की परेशानियां और कष्टों का सामना करना पड़ा।
रामानुजन जब मात्र 2 वर्ष के थे तब चेचक रोग फैलने से लगभग 40,000 लोग मर गए थे। उसी समय रामानुजन को भी चेचक रोग हो गया था।
लेकिन इस रोग में उनका बचाव हो गया, जिसके बाद रामानुजन की मां अपने पिता के पास कांचीपुरम ले कर चली गई। यहां पर उन्होंने प्राथमिक स्कूल में प्रवेश लिया और प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की।
रामानुजन का शुरुआती जीवन
रामानुजन का शुरुआती जीवन काफी कठिनाइयों भरा रहा। रामानुजन अपने शुरुआती शिक्षा के साथ-साथ धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया था।
अब तक उन्होंने अंकगणित, भूगोल, तमिल और अंग्रेजी की परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन किया था। दूसरे बच्चों के मुकाबले वे इन विषय में काफी होशियार थे। उसके बाद में हाई स्कूल में प्रवेश करने पर मात्र 14 वर्ष की आयु में ही गणित की त्रिकोणमिति डिग्री पर मास्टरी हासिल कर ली।
हाई स्कूल के अंतर्गत रामानुजन का ध्यान गणित की तरफ आकर्षित हो गया। वह दूसरे विषयों को छोड़कर केवल गणित पर ही ध्यान देने लग गए। परिणाम यह हुआ कि 11वीं कक्षा में फेल हुए केवल गणित विषय में ही पास हुए।
जिसके चलते उनको छात्रवृत्ति मिलनी बंद हो गई और उनके घर की स्थिति खतरे में आ गई। परंतु घर की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए उन्होंने गणित की कोचिंग सेंटर खोल दिया और बच्चों को गणित की पढ़ाई करवाने लगे।
कोचिंग के साथ-साथ 12वीं कक्षा पास करने के लिए उन्होंने प्राइवेट विद्यालय से फार्म भरा। लेकिन वे 12वी कक्षा में भी फेल हो गए। उसके बाद उन्होंने पढ़ाई लिखाई पूरी तरह से छोड़ दी और गणित में तरह-तरह की खोज करने के लिए लग गए।
वे अपने घर खर्च के लिए गणित का कोचिंग सेंटर भी चलाते थे और गणित के विषय में शोध भी किया करते थे। रामानुजन ने बिना किसी स्कूल, कॉलेज या शिक्षण संस्थान के ही गणित के विषय में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
बिना किसी स्कूल कॉलेज के गणित के विषय में महत्वपूर्ण योगदान के लिए मद्रास कॉलेज की तरफ से उनको छात्रवृत्ति मिलनी शुरू हो गई और उनके यह चर्चे देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी प्रसारित हो गए थे।
इस बात की सूचना मिलने पर लंदन के एक महान गणितज्ञ हार्डी ने रामानुजन को लंदन बुलाया। उनके इस आमंत्रण पर रामानुजन लंदन गए, जहां पर उनकी तबीयत बिगड़ने लग गई।
कुछ ही समय बाद बिगड़ती तबीयत के साथ वह वापस भारत लौट गए। जहां पर उनका इलाज नहीं हो सका और मात्र 33 वर्ष की आयु में उनकी मौत हो गई।
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रामानुजन का संघर्ष भरा जीवन
रामानुजन 12वीं कक्षा में फेल होने के बाद नौकरी की तलाश में इधर-उधर भटकते रहे। लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिली। फिर भी उन्होंने गणित के अंतर्गत शोध जारी रखी।
सन 1909 में रामानुजन शादी की उम्र के हो गए तो मात्र 9 वर्ष की लड़की की शादी रामानुजन से करवा दी। उस लड़की का नाम जानकी था। उन्होंने भी सम्मानजनक कार्य किया है लेकिन उस समय वह शादी के बाद वापस अपने माता-पिता के पास चली गई।
उस समय रामानुजन के घर की आर्थिक स्थिति काफी खराब थी। क्योंकि उनके पिता बुजुर्ग हो चुके थे और घर की जिम्मेदारी रामानुजन पर आ चुकी थी। काफी कठिनाइयों के बाद सन 1912 में रामानुजन को एक क्लर्क की नौकरी मिल गई। तब तक उसकी पत्नी जानकी भी थोड़ी बड़ी हो चुकी थी।
अब जानकी भी अपने पति रामानुजन के साथ रहने लगी। जानकी अपने पति से काफी प्रेम करती थी और वह हमेशा उनका ध्यान रखती थी। रामानुजन की पत्नी जानकी को पदम श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है क्योंकि उन्होंने ‘गन्ने के संकर प्रजाति’ की खोज की थी।
जानकी ने भी जीव विज्ञान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया था। जानकी ने मद्रास की प्रेसीडेंसी कॉलेज से वनस्पति विज्ञान में ऑनर्स की डिग्री हासिल की थी एवं जीव विज्ञान के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया था।
आज के समय में लोग रामानुजन को गणित के विषय में योगदान हेतु और उसकी पत्नी को जीव विज्ञान के क्षेत्र में योगदान हेतु जानते हैं।
रामानुजन का स्वास्थ्य बिगड़ चुका था। इसीलिए उन्होंने वह नौकरी छोड़ दी थी। लेकिन स्वास्थ्य में सुधार होने के बाद वे फिर से नौकरी की तलाश में घूमने लगे और गणित का कोचिंग सेंटर खोल दिया। कोचिंग सेंटर के जरिए वे हर महीने ₹5 कमाते थे, जिससे अपने घर का खर्च निकाल देते थे।
नौकरी की तलाश में मद्रास पहुंचे, जहां पर उनकी मुलाकात एक डिप्टी कलेक्टर से हुई। डिप्टी कलेक्टर का नाम रामास्वामी अय्यर था, जो एक गणित के विद्वान हुआ करते थे।
उन्होंने रामानुजन की योग्यता को पहचान लिया था। उन्होंने जिला अधिकारी रामचंद्र राव के पास रामानुजन को भेजकर हर महीने ₹25 की छात्रवृत्ति शुरू करवा दी।
लंदन में रामानुजन
गणित के विषय में उन्होंने 3000 से भी अधिक सूत्र लिखे थे। इसके अलावा उन्होंने अनेक तरह के गणित से संबंधित शोध किए थे। उनका एक शोध यहां के लोकल पत्रिका में छप गया था, जिसके बाद उन्हें काफी बड़े-बड़े लोग और गणितज्ञ जानने लगे। रामानुजन की प्रतिभा की जानकारी देश-विदेश में फैलने लगी।
इस बात की जानकारी लंदन के एक प्रोफेसर और गणितज्ञ हार्डि को मिली। हार्डि कुछ समय से एक प्रश्न का उत्तर ढूंढ रहे थे, उनका उत्तर रामानुजन के द्वारा प्रकाशित किए गए शोध में मिल गया। जिसके बाद उन्होंने रामानुजन को पत्र लिखकर लंदन बुलाया, लेकिन रामानुजन धन की कमी के कारण नहीं जा पाए।
प्रोफेसर हार्डि ने मद्रास यूनिवर्सिटी से रामानुजन के लिए छात्रवृत्ति शुरू करवाई, जिसके बाद वे लंदन गए। लंदन जाते समय उन्होंने 3000 से भी अधिक सूत्रों का एक रजिस्टर तैयार किया।
लंदन में प्रोसेसर के साथ मिलकर रामानुजन ने अनेक तरह के बड़े-बड़े शोध प्रकाशित किए थे। जिसके चलते उनको कैंब्रिज से बी.ए. की उपाधि दी गई थी।
परंतु लंदन की जलवायु रामानुजन के शरीर के अनुकूल नहीं थी। इसीलिए उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लग गया। जहां पर डॉक्टरों ने उन्हें वापस भारत जाने की सलाह दी और वे वापस भारत आ गए।
रामानुजन का निधन
रामानुजन जब लंदन में थे तो धीरे-धीरे वहां उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगाया था। डॉक्टरों ने कहा कि यहां की ठंडी जलवायु उनके शरीर के लिए अनुकूल नहीं है। रामानुजन तमिलनाडु के रहने वाले थे। तमिलनाडु भारत का एक अत्यंत गर्म इलाका है, जहां पर भयंकर गर्मी पड़ती है।
उन्होंने अपना पूरा जीवन गर्मी में निकाला और जब लंदन गए तो वहां पर अत्यंत ठंडा क्षेत्र था। वहां की ठंडी जलवायु उनके शरीर के अनुकूल नहीं थी। इसलिए उनका स्वास्थ्य धीरे-धीरे बिगड़ने लगाया।
वहां पर डॉक्टर ने कहा कि इन्हें क्षथ रोग है। लेकिन उस समय इस बीमारी का भी कोई इलाज नहीं था। डॉक्टरों ने उन्हें भारत जाने के लिए कहा और रामानुजन ने अपने गिरते स्वास्थ्य को देखते हुए वापस भारत आ गए।
यहां पर कुछ समय रहे, लेकिन दिन प्रतिदिन उनके स्वास्थ्य में गिरावट देखने को मिली। आखिरकार 26 अप्रैल 1920 को मात्र 33 साल की आयु में महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन का निधन हो गया।
यह खबर संपूर्ण गणित जगत के लिए और बड़े-बड़े गणितज्ञों के लिए निराशाजनक थी। उनकी मृत्यु के बाद सन 1976 में यूनिटी कॉलेज की लाइब्रेरी में एक रजिस्टर मिला, जो रामानुजन द्वारा लिखा गया था।
इसमें कम से कम 100 पन्ने उनके गणित से संबंधित सूत्र और शोध से भरे हुए थे। आज तक वैज्ञानिक उनके द्वारा लिखी गई पहेलियों को नहीं सुलझा पाए हैं। अपनी शिक्षा के दौरान प्रिंसिपल ने रामानुजन पर लागू होने वाले सभी नियम हटा दिया थे। वे अत्यंत सरल स्वभाव के व्यक्ति थे।
लंदन जाने के बाद भी उन्होंने अपना खाना खुद बनाना चाहा और खुद ही हर रोज खाना बनाकर खाते थे। रामानुजन अक्सर रात को उठकर गणित के सूत्र लिखते और फिर से सो जाते थे।
रामानुजन को टी.बी की बीमारी थी। फिर भी उन्होंने गणित के क्षेत्र में अपने शोध को जारी रखा। 30 वर्ष की आयु में रामानुजन ने 3900 से अधिक समीकरणों का संकलन किया था।
दो संख्याओं के घनो के योग को रामानुजन संख्या के रूप में माना जाता है। रामानुजन द्वारा लिखा गया एक गणित का सूत्र कैंसर की बीमारी को पढ़ने में मदद करता है।
श्रीनिवास रामानुजन तमिलनाडु के एक गरीब परिवार में जन्म लेने के बाद उन्होंने अपने जीवन में अनेक तरह की कठिनाइयों और परेशानियों का सामना किया। फिर भी उन्होंने अपने गणित के प्रति रुचि को नहीं छोड़ा और गणित में अन्य तरह के शोध किये, अनेक सारे सूत्र बनाएं।
आज के समय में गणित से संबंधित लोग श्रीनिवास रामानुजन के बारे में बखूबी जानते ही है। पूरी दुनिया उन्हें एक महान गणितज्ञ कहती है।
इस लेख में श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी (ramanujan ka jivan parichay) के बारे में बताया है। साथ में श्रीनिवास रामानुजन का गणित में योगदान, श्रीनिवास रामानुजन की शिक्षा आदि के बारे में जाना। हमें उम्मीद है यह जानकारी आपको जरूर पसंद आई होगी। इसे आगे शेयर जरुर करें।
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गणित दिवस पर निबंध एवं भाषण | Speech & Essay on National Mathematics Day in Hindi
राष्ट्रीय गणित दिवस पर निबंध व भाषण (मैथमेटिक्स डे पर निबंध कैसे लिखे) गणित दिवस कब है और गणित दिवस क्यों मनाया जाता है गणित दिवस, रामानुजन पर निबंध हिंदी में (Speech and Essay on National Mathematics Day in Hindi, Essay on srinivasa ramanujan hindi)
22 दिसंबर को हर साल भारत में राष्ट्रीय गणित दिवस (National Mathematics Day) मनाया जाता है। 22 दिसंबर के दिन ही भारत के महान आधुनिक गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन पैदा हुए थे जिन्हें आधुनिक काल के महानतम गणितज्ञों में गिना जाता है।
यही कारण है कि National Mathematics Day के अवसर पर 22 दिसंबर को भारत में विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक और शिक्षा से जुड़े हुए कार्यक्रम आयोजित किए जाते है। इन कार्यक्रमों के जरिए भारत वासियों को भारत के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के जीवन और गणित में उनके योगदानों के बारे में बताया जाता है और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है।
वैसे तो भारत में कई महान गणितज्ञ पैदा हुए हैं लेकिन श्रीनिवास रामानुजन को आर्यभट्ट के बाद भारत का सबसे महान गणितज्ञ माना जाता है जिन्होंने बिना किसी विशेष डिग्री के खुद से ही गणित का अध्ययन किया और 12वीं फेल होने के बावजूद भी गणित का जादूगर बन गए।
तो चलिए आज आपको इस आर्टिकल के जरिए राष्ट्रीय गणित दिवस के इतिहास (Hindi Essay on National Mathematics Day in Hindi) के बारे में बताते हैं।
राष्ट्रीय गणित दिवस पर निबंध एवं भाषण (Speech & Essay on National Mathematics Day in hindi)
राष्ट्रीय गणित दिवस भारत के द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण दिवस है इस दिवस के माध्यम से हम महान गणितज्ञ श्रीनिवास अयंगर को हम लोग श्रद्धांजलि अर्पित कर उनको सम्मान देने का काम करते हैंI
गणित के क्षेत्र में उनका योगदान अतुलनीय है उनके द्वारा गणित के क्षेत्र में बनाए गए अनंत श्रृंखला, संख्या सिद्धांत, गणितीय विश्लेषण इत्यादि का अध्ययन मैथमेटिक्स की पढ़ाई करने वाले प्रत्येक छात्र को करना पड़ता हैI क्योंकि इसके माध्यम से ही आप मैथमेटिक्स का कोर्स पूरा कर पाएंगे यही वजह है कि 2012 में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उनकी 125वीं वर्षगांठ के उपलक्ष में गणित दिवस मनाने की घोषणा की कि भारत में आपसे 22 दिसंबर राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाया जाएगा और तब से ही राष्ट्रीय गणित दिवस मनाने की परंपरा शुरू हुई जो आज तक कायम है आने वाले भविष्य में भी कायम रहेगीI
राष्ट्रीय गणित दिवस का संक्षिप्त विवरण (Essay on National Mathematics Day in hindi)
राष्ट्रीय गणित दिवस कब और क्यों मनाया जाता हैं (National Mathematics Day Kab Manaya Jata Hai)
राष्ट्रीय गणित दिवस 22 दिसंबर 2022 को भारत में उत्साह पूर्वक मनाया जाएगा इस दिन भारत के स्कूल और कॉलेजों में विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे जिसमें छात्रों को महान गणितज्ञ श्रीनिवास अयंगर रामानुजन जीवन के बारे में व्यापक जानकारी दी जाएगी उन्होंने गणित के क्षेत्र में क्या-क्या चीजें अविष्कार किया थाI
छात्र उनके जीवन से प्रेरणा लेकर गणित के क्षेत्र में अपना करियर बना कर देश के विकास में अपनी भागीदारी को ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के साथ निर्वाह कर सकें गणित के क्षेत्र में श्रीनिवासन अयंगर राम अर्जुन का योगदान रहा उन्होंने गणित के ऐसे-ऐसे फामूर्लो की खोज की जिनका प्रयोग आज के आधुनिक युग में जटिल से जटिल गणनाओं की पहेली सुलझाने में किया जा रहा है।
राष्ट्रीय गणित दिवस के उद्देश्य (National Mathematics Day Aim)
राष्ट्रीय गणित दिवस का प्रमुख उद्देश्य लोगों के मन में मैथमेटिक्स के डर को दूर करना है जैसा कि आप लोग जानते हैं कि मैथमेटिक्स से कई लोग घबराते हैं क्योंकि मैथमेटिक्स में ऐसे नियम और सिद्धांत होते हैं जिसे समझ पाना सभी व्यक्ति के लिए संभव नहीं है राष्ट्रीय गणित दिवस के माध्यम से लोगों को मैथ के क्षेत्र में रुचि हो सके उसके लिए प्रोत्साहित करना राष्ट्रीय गणित दिवस का प्रमुख उद्देश्य है इसके अलावा मैथमेटिक्स का हमारे जीवन के साथ गहरा संबंध है क्योंकि दैनिक दिनचर्या में हम सभी लोग मैथमेटिक्स का इस्तेमाल करते हैं तभी जाकर हमारा जीवन सुचारू रूप से संचालित होता हैI
गणित दिवस के अवसर पर निबंध एवं रामानुजन जीवन से जुड़ी खास व रोचक बातें (Facts about Srinivasa Ramanujan in hindi)
- रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 के दिन 400 किलोमीटर दूर ईरोड नगर, मद्रास में हुआ था।
- वह छोटी सी उम्र से ही अपने साथी दोस्तों को गणित की शिक्षा देते थे। उन्होंने सातवी कक्षा में ही बीए के छात्रों को गणित पढ़ाते थे।
- वह दिन रात गणित के फामूलों बनाने में लगा देते थे।
- उन्होंने अपने छोटे से जीवनकाल में गणित के 3000 से भी अधिक प्रेमेंयों का संकलन किया
- रामानुजन ट्रिनीटी कॉलेज के फिलास्फर बनने वाले पहले भारतीय व्यक्ति थे।
- 1913 में उन्होंने अपने सारे गणित के फामूर्लो को कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और गणिज्ञ जी.एच. हार्डी को भेज दिये।
- उनकी चिट्ठी में ऐसे-ऐसे फामूर्ले लिखे हुये थे जिसे देखकर हार्डीं दंग रह गये थे।
- 1918 में रामानुजन को कैम्ब्रिज फिलॉस्फिीकल सोसाइटी, रॉयल सोसाइटी तथा ट्रिनीटी कॉलेज का फेलो व सदस्य चुना गया। यह सम्मान पाने वाले वह पहले गणिज्ञ थे।
- उन्होंने 1919 में मॉक थिटा की खोज उनके द्वारा की गई थी जिसका इस्तेमाल ब्लैक हॉल की पहली सुलझाई गई थी।
- रामानुजन ने अनंत की श्रृंखला दिखाने के लिये 17 अलग-अलग फार्मूले लिखे थे।
- रामानुजन की मृत्यु सन को टीवी के कारण हुई थी लेकिन जब उनकी तबीतयन ठीक नहीं थी तब भी वह पेट के बल गणित के फार्मूलों को लिखा करते थे।
- उन्होंने अपनी मृत्यु से पहले तीन नोटबुक में लिखे गणित के हजारों फार्मूले जो कि ट्रिनीटी कॉलेज के ग्रंथालय में पहुंच गई। इंटरनेशनल सेंटर फॉर थियोरिकल फिजिक्स द्वारा 2005 में रामानुजन पुरस्कार देने की शुरूआत की गई। इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को विभिन्न देशों के प्रतिभाशाली 45 वर्ष से कम आयु के युवाओं को गणित के क्षेत्र में कार्य करने वालों दिया जाता है।
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राष्ट्रीय गणित दिवस पर भाषण (Speech & Essay on National Mathematics Day in Hindi)
मेरे प्यारे सहपाठियों और माननीय शिक्षक और प्रधानाचार्य आप सभी को राष्ट्रीय गणित दिवस की हार्दिक शुभकामनाए।
मेरा सौभाग्य है कि मुझे आप लोगों ने श्रीनिवासन अयंगर रामानुजन जैसे महान व्यक्तित्व वाले व्यक्ति के जीवन के ऊपर अपना भाषण प्रस्तुत करने का अवसर दिया जैसा कि आप लोग जानते हैं।
आपको बता दूं कि भारत में राष्ट्रीय गणित दिवस श्रीनिवास रामानुजन जैसे महान गणितज्ञ के जन्मदिन के उपलक्ष में मनाया जाता है। गणित के क्षेत्र में उनका योगदान कभी नहीं भुलाया जा सकता। उन्होंने अपने जीवन में गणित का प्रचार प्रसार पूरी दुनियां में किया और 3000 से अधिक गणितीय प्रेमियों का संकलन भी किया।
उनका जन्म 22 दिसंबर 1887 को मद्रास से 400 किलोमीटर दूर ईरोड नगर में हुआ था। उन्हें बचपन से ही गणित विषय में काफी रुचि थी यही कारण था कि वह पढ़ने के लिए गणित को ज्यादा समय देते थे जबकि दूसरे विषयों पर ध्यान नहीं देते।
इसी के चलते उन्हें 11वीं और 12वीं में फेल भी होना पड़ा था लेकिन उन्होंने अपनी गाड़ी साधना जारी रखी और पूरी दुनिया को दिखा दिया कि अगर इंसान ठान ले तो खुद से कुछ भी सीख सकता है।
श्रीनिवास रामानुजन न केवल भारत के महान गणितज्ञ हैं बल्कि उन्हें दुनिया में आज भी आधुनिक काल के महानतम गणितज्ञ में गिना जाता है। महज 32 साल के छोटे से जीवन में उन्होंने गणित के 3000 से भी अधिक प्रेमेंयों का संकलन किया और गणित पर विश्लेषण के माध्यम से कई सारे सिद्धांत प्रतिपादित किए जिन्हें आज दुनिया भर की स्कूल और यूनिवर्सिटीज में पढ़ाया जाता है।
उनके द्वारा प्रतिपादित गणित सिद्धांत व फार्मूलों का इस्तेमाल ब्लैक हॉल को समझने में किया जाता है। उनके फार्मूलो को शोधकर्ताओं एवं गणिज्ञाें भी नहीं समझ नहीं पाते थे। वह जटिल से जटिल गणित के समीकरणों को चुटकियों में सुलझा लेते थे उनके लिये गणित के फार्मूले बनाना उनकी दिनचर्या का महत्वपूर्ण अंग थे।
श्रीनिवास रामानुजन के इन्हीं योगदान ओं को देखते हुए उनके सम्मान में प्रतिवर्ष 22 दिसंबर को उनका जन्मदिन राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाया जाता है बाकी लोग श्रीनिवास रामानुजन के जीवन और गणित में उनके योगदानों के बारे में जान सके और उनसे प्रेरणा ले सकें।
राष्ट्रीय गणित दिवस कब से मनाया जा रहा है ?
2012 में मनमोहन सिंह जो भारत के पूर्व प्रधानमंत्री थे उन्होंने श्रीनिवास रामानुजन के 125 वर्षगांठ पर इस बात की घोषणा की गई कि आप से भारत में 22 दिसंबर राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाया जाएगाI
राष्ट्रीय गणित दिवस किसकी याद में मनाया जाता है?
श्रीनिवास रामानुजन के याद में राष्ट्रीय गणित दिवस 22 दिसंबर को मनाया जाता हैI
प्रथम राष्ट्रीय गणित दिवस कब मनाया गया?
2012 में तत्कालिन प्रधानमंत्री एवं अर्थशास्त्री डॉ- मनमोहन सिंह जी द्वारा सन 2012 में म मनाने की शुरुआत की गई।
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श्रीनिवास रामानुजन: भारत का गणितीय रत्न! जीवन परिचय और योगदान। Srinivasa Ramanujan Biography in Hindi
इस लेख में हम गणित के क्षेत्र में भारत का गौरव श्रीनिवास रामानुजन के जीवन, संघर्षों और उपलब्धियों पर प्रकाश डालेंगे। आइए उनके द्वारा किए गए अद्भुत कार्य और उनकी रहस्यमयी गणितीय दुनिया के बारे में जानें।
जीवनी By Tathya Tarang, Last Update Wed, 07 August 2024, Share via WhatsApp Facebook
श्रीनिवास रामानुजन इयंगर (22 दिसंबर, 1887 - 26 अप्रैल, 1920) एक भारतीय गणितज्ञ थे, जिन्होंने गणित के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया। उनके पास औपचारिक शिक्षा का अभाव था, फिर भी उनकी गणितीय प्रतिभा अद्भुत थी।
रामानुजन का प्रारंभिक जीवन
रामानुजन का जन्म तमिलनाडु के इरोड में हुआ था। उनके पिता एक साड़ी की दुकान पर क्लर्क थे और माता एक गृहणी थीं। बचपन से ही रामानुजन गणित में रुचि रखते थे। उन्होंने खुद ही गणित की पढ़ाई की और उच्च स्तरीय गणित के सिद्धांतों को समझना शुरू कर दिया।
रामानुजन के गणितीय प्रतिभा का उदय
किशोरावस्था में ही रामानुजन ने गणित के क्षेत्र में असाधारण क्षमता दिखाई। उन्होंने स्वतंत्र रूप से कई गणितीय सूत्र और प्रमेयों की खोज की। उनके पास गणित के प्रति एक जुनून था और वह दिन-रात गणित के साथ जुड़े रहते थे।
संघर्ष और मान्यता
रामानुजन के गणितीय ज्ञान को शुरू में लोगों ने समझा नहीं। उन्हें नौकरी ढूंढने में काफी कठिनाइयां हुईं। लेकिन उनकी प्रतिभा को देखते हुए, उन्हें मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में एक क्लर्क की नौकरी मिल गई। इस दौरान उन्होंने अपने गणितीय शोध को जारी रखा और गणित के क्षेत्र के जाने-माने गणितज्ञों को पत्र लिखे।
रामानुजन की एकांतवासी प्रतिभा
रामानुजन अत्यंत एकांतवासी व्यक्ति थे। वे अपनी गणितीय दुनिया में खो जाते थे और घंटों तक किसी एक समस्या पर ध्यान केंद्रित कर सकते थे। उनकी यह एकाग्रता और आत्मनिर्भरता उनकी सफलता के प्रमुख कारक थे।
रामानुजन का आर्थिक संघर्ष
रामानुजन के जीवन में आर्थिक संघर्ष रहा। उन्हें अपनी पढ़ाई और शोध के लिए धन की कमी का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी गणितीय यात्रा जारी रखी।
रामानुजन की स्वास्थ्य समस्याएं
युवावस्था से ही रामानुजन स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते रहे। तपेदिक जैसी गंभीर बीमारी ने उनके जीवन को प्रभावित किया। इसके बावजूद उन्होंने गणित के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
रामानुजन की अल्पायु प्रतिभा
रामानुजन का जीवन अपेक्षाकृत छोटा था। केवल 32 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। इतने कम समय में उन्होंने गणित के क्षेत्र में जो योगदान दिया, वह अद्भुत है।
भारतीय गणितीय पुनर्जागरण
रामानुजन के काम ने भारत में गणित के प्रति रुचि को पुनर्जीवित किया। उनके बाद कई भारतीय गणितज्ञों ने उत्कृष्ट कार्य किया।
रामानुजन का गणितीय अंतर्ज्ञान
रामानुजन के पास अद्भुत गणितीय अंतर्ज्ञान था। वे बिना किसी औपचारिक प्रमाण के ही जटिल सूत्रों को लिख सकते थे। बाद में गणितज्ञों ने इन सूत्रों के प्रमाण खोजे।
विश्व स्तर पर मान्यता
रामानुजन की प्रतिभा को विश्व स्तर पर मान्यता मिली। प्रसिद्ध गणितज्ञ जी. एच. हार्डी ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय बुलाया।
प्रोफेसर हार्डी से मिलन
श्रीनिवास रामानुजन के जीवन में एक व्यक्ति का विशेष महत्व रहा - प्रसिद्ध ब्रिटिश गणितज्ञ जी. एच. हार्डी। हार्डी ने रामानुजन की प्रतिभा को पहचाना और उन्हें कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय बुलाया। रामानुजन के पत्रों ने गणितज्ञ जी. एच. हार्डी का ध्यान आकर्षित किया। वहां रामानुजन ने हार्डी के साथ मिलकर कई महत्वपूर्ण गणितीय खोजें कीं।
हार्डी और रामानुजन के बीच एक अद्भुत सहयोग हुआ। हार्डी की औपचारिक गणितीय शिक्षा और रामानुजन की अद्भुत अंतर्ज्ञान का मिलन गणित के लिए एक वरदान साबित हुआ। हार्डी ने रामानुजन के काम को समझने और उसे दुनिया के सामने पेश करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने रामानुजन के कई परिणामों के प्रमाण भी दिए।
रामानुजन का गणित के क्षेत्रों में योगदान
रामानुजन ने संख्या सिद्धांत, अनंत श्रेणी, अपसारी श्रेणी, गणितीय विश्लेषण आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके द्वारा खोजे गए सूत्र और प्रमेय आज भी गणित के छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।
रामानुजन का विवाहित जीवन
श्रीनिवास रामानुजन का विवाह 14 जुलाई, 1909 को जानकी अम्माल से हुआ था।
जानकी अम्माल से उनकी शादी उनकी माँ द्वारा तय की गई थी। उस समय की परंपरा के अनुसार, जानकी अम्माल शादी के समय केवल दस वर्ष की थीं। यह उस समय की सामाजिक स्थिति का एक प्रतिबिंब था।
रामानुजन और जानकी का विवाह एक पारंपरिक भारतीय विवाह था। हालांकि, रामानुजन का अधिकांश समय गणित के अध्ययन में बीता, जिसके कारण दांपत्य जीवन में कुछ चुनौतियाँ आईं हो सकती हैं।
जानकी अम्माल ने रामानुजन के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने उनके संघर्षों में उनका साथ दिया और उनकी प्रतिभा को समझने का प्रयास किया।
रामानुजन का अंतिम समय
स्वास्थ्य समस्याओं के कारण रामानुजन को भारत लौटना पड़ा। 32 साल की कम उम्र में ही उनका निधन हो गया। हालांकि, उनके द्वारा किए गए कार्य ने गणित के क्षेत्र में एक नई दिशा दी।
श्रीनिवास रामानुजन एक ऐसे व्यक्ति थे, जिनके पास औपचारिक शिक्षा का अभाव था, लेकिन उनकी प्रतिभा ने उन्हें दुनिया के सर्वश्रेष्ठ गणितज्ञों में शामिल कर दिया।
रामानुजन और 1729 की कहानी
श्रीनिवास रामानुजन की गणितीय प्रतिभा के कई किस्से प्रसिद्ध हैं। उनमें से एक है संख्या 1729 की कहानी।
यह संख्या इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सबसे छोटी संख्या है जिसे दो अलग-अलग तरीकों से दो घनों के योग के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।
- 1729 = 1^3 + 12^3
- 1729 = 9^3 + 10^3
यह खोज एक दिलचस्प संयोग के कारण हुई। हार्डी एक बार बीमार रामानुजन को देखने अस्पताल गए। उन्होंने बताया कि उनकी टैक्सी की संख्या 1729 थी, जो एक बड़ी उबाऊ संख्या लग रही थी। रामानुजन ने तुरंत जवाब दिया कि यह एक बहुत ही दिलचस्प संख्या है क्योंकि इसे दो अलग-अलग तरीकों से दो घनों के योग के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।
यह घटना रामानुजन की त्वरित बुद्धि और गणित के प्रति उनके गहरे लगाव को दर्शाती है।
रामानुजन की नोटबुक्स: गणित का खजाना
रामानुजन की एक सबसे महत्वपूर्ण विरासत उनकी नोटबुक्स हैं। इन नोटबुक्स में उन्होंने अपने गणितीय विचारों, सूत्रों, और प्रमेयों को विस्तार से लिखा था। इन नोटबुक्स को बाद में प्रकाशित किया गया और गणितज्ञों के लिए एक अनमोल खजाना साबित हुई।
इन नोटबुक्स में कई ऐसे सूत्र और परिणाम हैं जिनके बारे में आज भी शोध चल रहा है। कई नए गणितीय खोजें इन नोटबुक्स के अध्ययन से ही हुई हैं।
रामानुजन की नोटबुक्स उनकी प्रतिभा की गहराई को दर्शाती हैं। इन नोटबुक्स के अध्ययन से आने वाली पीढ़ियों के गणितज्ञों को प्रेरणा मिलती रहेगी।
रामानुजन की तीन मुख्य नोटबुक्स हैं:
नोटबुक 1 : इस नोटबुक में ज्यादातर उनके प्रारंभिक कार्य शामिल हैं, जिसमें अंकगणितीय फलन, अनंत श्रेणियां, और अन्य विषयों पर उनके विचार हैं।
नोटबुक 2 : इस नोटबुक में अधिक उन्नत विषयों पर काम शामिल है, जैसे कि एल्लिप्टिक फलन, हाइपरज्योमेट्रिक श्रेणियां, और संख्या सिद्धांत।
लॉस्ट नोटबुक : यह नोटबुक रामानुजन के अंतिम वर्षों की है और इसमें कुछ अत्यंत गहन और मूल विचार शामिल हैं।
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श्रीनिवास रामानुजन, एक ऐसे व्यक्ति थे जिनकी गणितीय प्रतिभा ने दुनिया को चकित कर दिया। औपचारिक शिक्षा की कमी के बावजूद, उन्होंने गणित के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया। उनकी उपलब्धियां इतनी विस्तृत और गहन हैं कि उन्हें पूरी तरह समझने के लिए कई जीवनकाल भी कम पड़ सकते हैं, लेकिन हम कुछ प्रमुख क्षेत्रों में उनकी उपलब्धियों पर एक नज़र डाल सकते हैं:
संख्या सिद्धांत
- अंकगणितीय फलन : रामानुजन ने अंकगणितीय फलनों के क्षेत्र में गहन अध्ययन किया। उन्होंने कई नए प्रकार के अंकगणितीय फलनों की खोज की और उनके गुणधर्मों का विश्लेषण किया।
- पार्टीशन फलन : रामानुजन ने संख्याओं के विभाजन (पार्टीशन) के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने पार्टीशन फलन के लिए कई नए सूत्र और पहचानें खोजीं।
- ताऊ फलन : रामानुजन ने ताऊ फलन नामक एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंकगणितीय फलन की परिभाषा दी। इस फलन के गुणधर्मों का अध्ययन आज भी गणितज्ञों के लिए एक चुनौतीपूर्ण क्षेत्र है।
अनंत श्रेणियाँ
- रामानुजन थीटा फलन : रामानुजन ने थीटा फलन नामक एक विशेष प्रकार के अनंत श्रेणी का अध्ययन किया। उन्होंने इस फलन के गुणधर्मों का विस्तृत विश्लेषण किया और कई नए परिणाम प्राप्त किए।
- हाइपरज्योमेट्रिक श्रेणियाँ : रामानुजन ने हाइपरज्योमेट्रिक श्रेणियों के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने इन श्रेणियों के लिए कई नए सूत्र और पहचानें खोजीं।
अन्य क्षेत्र
- अभिन्न गणित : रामानुजन ने अभिन्न गणित के क्षेत्र में भी कुछ महत्वपूर्ण परिणाम प्राप्त किए। उन्होंने बेटा फलन और गामा फलन के साथ-साथ अन्य विशेष प्रकार के अभिन्नों का अध्ययन किया।
- सन्निकटन सिद्धांत : रामानुजन ने संख्याओं के सन्निकटन के क्षेत्र में भी काम किया। उन्होंने कुछ नए प्रकार के सन्निकटन सूत्र विकसित किए।
- विशिष्ट फलन : रामानुजन ने कई विशेष फलनों का अध्ययन किया, जिनमें से कुछ उनके नाम पर ही जाने जाते हैं, जैसे रामानुजन थीटा फलन और रामानुजन ताऊ फलन।
रामानुजन की गणितीय प्रतिभा की एक अद्भुत विशेषता यह थी कि उनके अधिकांश परिणाम बिना किसी औपचारिक प्रमाण के ही प्राप्त होते थे। वह अपने परिणामों को अंतर्ज्ञान और गणना के आधार पर प्राप्त करते थे। बाद में अन्य गणितज्ञों ने इन परिणामों के प्रमाण खोजे।
रामानुजन की गणितीय विरासत आज भी जीवित है। उनके द्वारा खोजे गए सूत्र और प्रमेय आज भी गणित के विभिन्न क्षेत्रों में उपयोग किए जाते हैं। उनके काम ने गणित के विकास में एक नई दिशा दी और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।
रामानुजन के विचार
श्रीनिवास रामानुजन के जीवन के बारे में जितना कम ज्ञात है, उतना ही उनके विचारों के बारे में। हालांकि, कुछ उद्धरण और उनके जीवन की घटनाओं से उनके व्यक्तित्व और दृष्टिकोण का अंदाजा लगाया जा सकता है।
- " एक समीकरण मेरे लिए तब तक कोई अर्थ नहीं रखता, जब तक कि वह ईश्वर के एक विचार को व्यक्त न करे। " - यह रामानुजन का प्रसिद्ध उद्धरण है जो उनके गहरे आध्यात्मिक विश्वास और गणित के प्रति उनके जुनून को दर्शाता है।
- देवी नामागिरी की कृपा : रामानुजन का मानना था कि उनकी गणितीय क्षमता देवी नामागिरी की कृपा है। उन्हें विश्वास था कि देवी उन्हें गणितीय सूत्र और प्रमेय स्वप्न में दिखाती हैं।
हालांकि, रामानुजन ने अपने विचारों को विस्तार से लिखा नहीं था, इसलिए उनके बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेकिन उनके जीवन और काम से यह स्पष्ट है कि वे एक गहरे आध्यात्मिक व्यक्ति थे और गणित के प्रति उनका जुनून अतुलनीय था।
रामानुजन की अंतिम विरासत: मॉक थीटा फलन
रामानुजन के जीवन के अंतिम समय में भी उनकी गणितीय प्रतिभा कम नहीं हुई। उनकी अंतिम विरासत है "मॉक थीटा फलन"।
अपने जीवन के अंतिम महीनों में, गंभीर बीमारी से जूझते हुए भी, रामानुजन ने हार्डी को एक पत्र लिखा जिसमें उन्होंने "मॉक थीटा फलन" नामक एक नए प्रकार के फलन के बारे में बताया। ये फलन पारंपरिक थीटा फलनों से भिन्न थे और उनके बारे में बहुत कम जानकारी थी।
रामानुजन की असमय मृत्यु के कारण इन फलनों के बारे में अधिक जानकारी नहीं मिल पाई। लेकिन बाद के वर्षों में गणितज्ञों ने इन फलनों पर शोध किया और पाया कि वे गणित के कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
रामानुजन की यह अंतिम विरासत उनकी प्रतिभा की गहराई को दर्शाती है और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक चुनौती और प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।
रामानुजन की स्मृति में
श्रीनिवास रामानुजन की मृत्यु युवा अवस्था में ही हो गई, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है। भारत में कई संस्थान और पुरस्कार उनके नाम पर हैं।
- रामानुजन इंस्टीट्यूट फॉर मैथमेटिक्स : चेन्नई में स्थित यह संस्थान रामानुजन की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए काम कर रहा है।
- रामानुजन पुरस्कार : गणित के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाने वाला यह पुरस्कार रामानुजन की स्मृति में दिया जाता है।
रामानुजन का जीवन और कार्य हमें प्रेरित करता है कि कठिन परिस्थितियों में भी यदि हमारे भीतर प्रतिभा है तो उसे निखारने के लिए हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए। उनकी कहानी हमेशा एक प्रेरणा स्रोत बनी रहेगी।
श्रीनिवास रामानुजन: जीवन और कार्य से जुड़े प्रमुख प्रश्न
श्रीनिवास रामानुजन कौन थे?
श्रीनिवास रामानुजन एक भारतीय गणितज्ञ थे, जिनकी गणितीय प्रतिभा अद्वितीय थी। उनके पास औपचारिक शिक्षा का अभाव था, फिर भी उन्होंने गणित के क्षेत्र में असाधारण योगदान दिया।
रामानुजन का जन्म कहाँ हुआ था?
रामानुजन का जन्म तमिलनाडु के इरोड में हुआ था।
रामानुजन की शिक्षा कैसी थी?
रामानुजन ने औपचारिक शिक्षा की कमी का सामना किया। उन्होंने ज्यादातर खुद ही गणित सीखा और गणित के प्रति एक जुनून विकसित किया।
रामानुजन की गणितीय प्रतिभा कैसे सामने आई?
रामानुजन की गणितीय प्रतिभा बचपन से ही दिखाई देने लगी। उन्होंने स्वतंत्र रूप से गणित के कई सूत्र और प्रमेयों की खोज की।
रामानुजन को पहचान किसने दिलाई?
ब्रिटिश गणितज्ञ जी. एच. हार्डी ने रामानुजन की प्रतिभा को पहचाना और उन्हें कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय बुलाया।
रामानुजन ने किन क्षेत्रों में काम किया?
रामानुजन ने संख्या सिद्धांत, अनंत श्रेणी, अपसारी श्रेणी, गणितीय विश्लेषण आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
रामानुजन की सबसे बड़ी उपलब्धियां क्या थीं?
रामानुजन ने अंकगणितीय फलन, पार्टीशन फलन, ताऊ फलन, रामानुजन थीटा फलन आदि पर महत्वपूर्ण कार्य किया। उनके सूत्र और प्रमेय आज भी गणितज्ञों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।
रामानुजन का स्वास्थ्य कैसा था?
रामानुजन स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते रहे। तपेदिक जैसी बीमारी ने उनके जीवन को प्रभावित किया।
रामानुजन की मृत्यु कैसे हुई?
रामानुजन का निधन 32 साल की कम उम्र में ही हो गया।
रामानुजन की विरासत क्या है?
रामानुजन की विरासत उनके द्वारा किए गए गणितीय कार्यों के रूप में जीवित है। उनके काम ने गणित के विकास में एक नई दिशा दी और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।
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श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय
श्रीनिवास रामानुजन अयंगर भारत के महानतम गणितज्ञों में से एक थे, जिन्होंने अपनी अलौकिक ज्ञान से गणित के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए थे। उन्हें आधुनिक काल के महानतम गणित विचारकों में गिना जाता है। उनके द्धारा गणित में किए गए प्रयोगों का इस्तेमाल आज तक किया जाता है।
वे एक ऐसे गणितज्ञ थे, जिन्होंने गणित विषय में कभी कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं लिया था, लेकिन फिर भी गणित के क्षेत्र में अपनी महान खोजों के माध्यम से एक महान गणितज्ञ के रुप में पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान बनाई थी। आपको बता दें कि उन्होंने अपने अल्प जीवन काल में गणित की करीब 3900 प्रमेयों का संकलन किया और करीब 120 सूत्र लिखे थे। उनके द्धारा संकलित की गई प्रमेयों में से रामानुजन प्राइम और रामानुजन थीटा प्रसद्धि हैं।
इसके अलावा उनकी शोधों को इंटरनेशनल प्रकाशन रामानुजन जर्नल में भी प्रकाशित किया है, ताकि उनके द्धारा किए गए गणित प्रयोगों का इस्तेमाल पूरे विश्व भर में किया जा सके। तो आइए जानते हैं गणित के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले इस महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के जीवन के बारे में-
महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय – Srinivasa Ramanujan Biography in Hindi
एक नजर में –
प्रारंभिक जीवन –.
श्रीनिवास रामानुजन 22 दिसम्बर 1887 को भारत के तमिलनाडु के कोयंबटूर के ईरोड गांव में एक पारंपरिक ब्राह्मण परिवार में जन्में थे। उनके पिता श्रीनिवास अय्यंगर एक साड़ी की दुकान में मुनीम थे। उनकी माता, कोमल तम्मल एक घरेलू गृहिणी थी और साथ ही स्थानीय मंदिर की गायिका भी थीं। उन्हें अपनी माता से काफी लगाव था। वह अपने परिवार के साथ शुरुआत में कुम्भकोणम गांव में रहते थे।
शिक्षा –
रामानुजन ने अपनी शुरुआती शिक्षा कुंभकोणम के प्राथमिक स्कूल से ही हासिल की थी। इसके बाद मार्च 1894 में, रामानुजन का दाखिला तमिल मीडियम स्कूल में करवाया गया। हालांकि, शुरु से ही गणित विषय से अत्याधिक लगाव की वजह से रामानुजन का मन पारंपरिक शिक्षा में नहीं लगता था।
इसके बाद उन्होंने 10 साल की उम्र में प्राइमरी परीक्षा में जिले में सबसे अधिक अंक प्राप्त किए और आगे की शिक्षा टाउन हाईस्कूल से प्राप्त की। वे शुरु से ही काफी होनहार और मेधावी छात्र एवं सरल एवं सौम्य स्वभाव के बालक थे। उन्होंने अपने स्कूल के दिनों में ही उच्च स्तर की गणित का अच्छा ज्ञान हो गया था।
वहीं गणित और अंग्रेजी विषय में रामानुजन के सबसे अच्छे अंक आने की वजह से उन्हें स्कॉलरशिप भी मिली थी, धीरे-धीरे रामानुजन गणित में इतने खो गए कि उन्होंने अन्य विषयों को पढ़ना तक छोड़ दिया था, जिसकी वजह से वे गणित को छोड़कर अन्य सभी विषयों में फेल हो गए और वे 12वीं में पास नहीं कर सके।
विपरीत परस्थितियों में भी गणित के शोध चलाते रहे –
रामानुजन को अपने युवावस्था में काफी संघर्ष का सामना करना पड़ा। उनके जीवन में एक दौर ऐसा भी आया था, जब वे गरीबी और बेरोजगारी से बुरी तरह जूझ रहे थे। वे किसी तरह ट्यूशन आदि पढ़ाकर अपना गुजर-बसर करते थे। वहीं गणित की शिक्षा हासिल करना उनके लिए एक बड़ी चुनौती बन गया था।
यहां तक की उन्हें लोगों के सामने भीख तक मांगनी पड़ी थी। लेकिन इन विपरीत परस्थितियों में भी श्रीनिवास रामानुजन ने कभी हिम्मत नहीं हारी और गणित से संबंधित अपनी रिसर्च जारी रखी। हालांकि इस दौरान उन्हें अपने काम के लिए सड़कों पर पड़े कागज उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा था, कई बार तो वे नीली स्याही से लिखे कागजों पर लाल कलम से लिखते थे।
साल 1908 में रामानुजन की मां ने इनकी शादी जानकी नाम की लड़की से कर दी। इसके बाद वे अपनी शादीशुदा जिंदगी की जिम्मेदारी उठाने के लिए नौकरी की तलाश में मद्रास चले गए और लेकिन 12वीं में उत्तीर्ण नहीं होने के कारण उन्हें नौकरी नहीं मिली, दूसरी तरफ उनकी हेल्थ में भी लगातार गिरावट आ रही थी।
जिसकी वजह से इन्हें वापस अपने घऱ कुंभकोणम का रुख करना पड़ा। हालांकि अपने दृढ़संकल्प के प्रति अडिग रहने वाले रामानुजन अपने स्वास्थ्य में सुधार होते देख एक बार फिर से मद्रास नौकरी की तलाश में चले गए और इस बार वे अपने गणित की रिसर्च को दिखाने लगे। फिर कुछ दिनों के कड़े संघर्ष और चुनौतियों के बाद उनकी मुलाकात वहां के डिप्टी कलेक्टर श्री वी. रामास्वामी अय्यर से हुईं, जो कि गणित के प्रकंड विद्वान थे।
इसके बाद ही उनका जीवन बदल दिया। अय्यर ने उनकी गणित की विलक्षण प्रतिभा को पहचान लिया और फिर उनके लिए 25 रूपये मासिक स्कॉलरशिप देने का प्रावधान दिया। जिसके सहारे रामानुजन ने मद्रास में एक साल रहते हुए अपना पहला शोधपत्र “जर्नल ऑफ इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी” में प्रकाशित किया।
इसका शीर्षक था “बरनौली संख्याओं के कुछ गुण”। उनके इस शोधपत्र को काफी सराहना मिली और वे गणित के महान विव्दान के रुप में पहाचाने जाने लगे। इसके बाद उन्होंने साल 1912 में मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में क्लर्क की नौकरी ज्वॉइन कर ली। नौकरी के साथ-साथ वे अपनी कल्पना शक्ति के बल पर गणित के रिसर्च और नए-नए सूत्र लिखते थे।
मशहूर गणितज्ञ प्रोफेसर हार्डी से पत्राव्यवहार एवं विदेश जाना –
विलक्षण प्रतिभा के धनी रामानुजन दिन पर दिन गणित पर नए रिसर्च कर रहे थे। हालांकि उस दौरान रामानुजन को गणित संबंधी रिसर्च काम को आगे बढ़ाने के लिए अंग्रेजी गणितज्ञ की सहायता की जरूरत थी, लेकिन उस दौरान भारतीय गणितज्ञ को अंग्रेज वैज्ञानिकों के सामने अपनी प्रस्तुत करने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता था।
लेकिन रामानुजन ने अपने कुछ प्रशंसकों और मित्रों की मद्द से अपने गणितीय सिद्धांत के सूत्रों को प्रोफेसर शेषू अय्यर को दिखाए जिसके बाद उन्होंने इसे प्रसिद्ध गणितज्ञ प्रोफेसर हार्डी के पास भेजने की सलाह दी। साल 1913 में रामानुजन ने प्रोफेसर हार्डी को पत्र लिखकर गणित में खोजी गईं उनकी प्रमेयों की लिस्ट भेजी, जिसे पहले तो हार्डी की समझ में नहीं आई, लेकिन बाद में वे रामानुजन की गणित की अद्भुत प्रतिभा का अंदाजा हो गया था।
इसके बाद रामानुजन और हार्डी के बीच पत्राव्यवहार शुरु हो गया और फिर प्रोफेसर हार्डी ने रामानुजन को इंग्लैंड के कैम्ब्रिज में गणित संबंधी रिसर्च करने के लिए कहा। इसके बाद रामानुजन कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज में जाकर हार्डी के साथ मिलकर रिसर्च करने लगे और कई शोधपत्र प्रकाशित किए।
इस दौरान श्रीनिवास रामानुजन की गणित की एक विशेष रिसर्च के लिए उन्हें कैंब्रिज यूनिवर्सिटी ने बी . ए . की उपाधि से भी नवाजा। इस दौरान वे अपने करियर में सफलता के नए आयाम छू रहे थे, तो वहीं दूसरी तरफ रामानुजन की हेल्थ उनका साथ नहीं दे रही थी, उस दौरान वे टीबी रोग से ग्रसित हो गए और फिर कुछ दिन उन्होंने सेनेटोरियम में बिताए।
सबसे कम उम्र में रॉयल सोसाइटी की सदस्यता पाने वाले पहले व्यक्ति –
गणित के क्षेत्र में उनकी विलक्षण प्रतिभा को देखते हुए रॉयल सोसाइटी का फेलो चुना गया। वे रॉयल सोसाइटी सदस्यता ग्रहण करने वाले इतिहास के सबसे कम उम्र के व्यक्ति थे। इसके बाद ट्रिनिटी कॉलेज की फेलोशिप पाने वाले वे पहले ऐसे भारतीय बने। इसके साथ ही उन्हें कैम्ब्रिज फिलोसॉफिक सोसायटी का फेलो भी चुना गया था।
इसके बाद वे अपनी अद्भुत कल्पना शक्ति से गणित में एक के बाद एक नए प्रयोग करते रहे, इस दौरान वे अपने कैरियर में काफी उपलब्धियां हासिल कर रहे हैं, लेकिन दूसरी तरफ उनका लगातार बिगड़ता स्वाथ्य उनके मार्ग में रुकावट पैदा कर रहा था। वहीं इसके बाद डॉक्टरों की सलाह पर वे भारत वापस लौटे और फिर मद्रास यूनिवर्सिटी में अध्यापन और रिसर्च कामों में फिर से जुट गए।
निधन –
महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन अपनी जिंदगी के आखिरी समय में काफी बीमार रहने लगे थे, वे टीबी रोग से ग्रसित हो गए थे, जिसकी वजह से उनके स्वास्थ्य में लगातार गिरावट आती रही, जिसके चलते उन्होंने महज 33 साल की अल्पआयु में 26 अप्रैल, 1920 को अपनी आखिरी सांस ली।
महत्वपूर्ण जानकारी –
- श्रीनिवास रामानुजन स्कूल में हमेशा ही अकेले रहते थे। उनके सहयोगी उन्हें कभी समझ नही पाए थे। रामानुजन गरीब परीवार से सम्बन्ध रखते थे और अपने गणितों का परीणाम देखने के लिए वे पेपर की जगह कलमपट्टी का इस्तेमाल करते थे। शुद्ध गणित में उन्हें किसी प्रकार का प्रशिक्षण नही दिया गया था।
- गवर्नमेंट आर्ट कॉलेज में पढ़ने के लिए उन्हें अपनी शिष्यवृत्ति खोनी पड़ी थी और गणित में अपने लगाव के कारण अन्य दूसरे विषयो में वे फेल हो गए थे।
- रामानुजन ने कभी कोई कॉलेज डिग्री प्राप्त नही की। फिर भी उन्होंने गणित के काफी प्रचलित प्रमेयों को लिखा। लेकिन उनमे से कुछ को वे सिद्ध नही कर पाये।
- इंग्लैंड में हुए जातिवाद के रामानुजन गवाह बने थे।
- उनकी उपलब्धियों को देखते हुए 1729 नंबर हार्डी-रामानुजन नंबर के नाम से जाना जाता है।
- 2014 में उनके जीवन पर आधारीत तमिल फ़िल्म ‘रामानुजन का जीवन’ बनाई गई थी।
- रामानुजन की 125 वीं एनिवर्सरी पर गूगल ने डूगल बनाकार उन्हें सम्मान अर्जित कीया था।
- श्रीनिवास रामानुजन को गणित में दिए गए उनके महत्वपूर्ण योगदानों के लिए हमेशा याद किया जाता रहेगा।
12 thoughts on “श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय”
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